
गुरुग्राम, 9 फरवरी। ‘मिले सुर मेरा तुम्हारा‘… में 100 से अधिक छात्रों ने अपनी प्रतिभा दिखाई। स्वर कला संगम और पं. भीमसेन जोशी संगीत अकादमी ने आज यहां शास्त्रीय गायक और भारत रत्न पं. भीमसेन जोशी जी की 103वीं जयंती पर यहां ‘मिले सुर मेरा तुम्हारा’ का वार्षिक दिवस समारोह मनाया।
शास्त्रीय संगीत कलाकार और शिक्षाविद् मुक्ता मोनीश मेहता और उनके पिता प्रो. बलदेव सिंह बाली (पंडित भीमसेन जोशी जी के शिष्य) द्वारा पंडित भीमसेन जोशी जी के बेटों, जयंत जोशी और श्रीनिवास जोशी के साथ मिलकर 2017 में स्थापित, स्वर कला संगम भारतीय शास्त्रीय संगीत और नृत्य की समृद्ध विरासत को संरक्षित करने और बढ़ावा देने के लिए समर्पित है। सेक्टर 51 के आर्टेमिस हॉस्पिटल्स के ऑडिटोरियम में आयोजित वार्षिक दिवस समारोह में भारतीय शास्त्रीय गायन और कथक में विशेषज्ञता रखने वाले 100 से अधिक छात्रों ने प्रतिभा का प्रदर्शन किया। इस कार्यक्रम का उद्देश्य भारतीय शास्त्रीय कलाओं की गहराई और सुंदरता को दर्शाने वाले विविध प्रदर्शनों के माध्यम से दर्शकों को प्रेरित करना और उनसे जुड़ना है।
वरिष्ठ छात्रों द्वारा सरस्वती वंदना, इस बात पर जोर देते हुए कि ज्ञान की खोज की कोई उम्र सीमा नहीं होती और नन्हे-मुन्ने बच्चों ने अपनी मधुर आवाज से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। समारोह में भगवान कृष्ण की भक्ति के दिव्य सार से दर्शकों को अनुभूत कराया गया। 4 वर्षीय प्रतिभाशाली कलाकारों ने राग यमन में सरगम गीत पर सभी का मन मोह लिया। इन नन्हे-मुन्ने कलाकारों की सटीक संगीत नोट्स और लय का प्रदर्शन देखने लायक था, जो शास्त्रीय मूल सिद्धांतों पर उनकी पकड़ को उजागर करता हुआ नजर आया। 8-10 वर्ष की आयु के छात्रों द्वारा राग बिहाग प्रदर्शन (बड़ा ख्याल और छोटा ख्याल) सबको आश्चर्य में डाल गया। उन्होंने अपने प्रदर्शन मंे जटिल सरगम, आलाप और तान में दर्शकों को डूबो दिया।
वयस्क शिक्षार्थियों (25-30 वर्ष) द्वारा राग खमाज में ठुमरी की भावपूर्ण प्रस्तुति भावनात्मक सुंदरता को दर्शा गई, जिसमें रोमांटिक और भक्ति भावों की विशेषता थी। राग मेघ मल्हार में ‘गरज गरज‘ का समूह प्रदर्शन शक्तिशाली स्वर गतिशीलता के माध्यम से मानसून की भावना दर्शाता हुआ राग के जीवंत सार को दर्शा गया। दादरा, राग अलहिया बिलावल और मिश्रित रागों में शास्त्रीय प्रस्तुतियों ने विविध मनोदशाओं और स्वरों को प्रदर्शित किया, जिससे दर्शकों को शास्त्रीय बारीकियां पकड़ने में मदद मिली।
युवा नर्तकों (4-7 वर्ष) द्वारा ‘वक्रतुंड महाकाय‘ पर गणेश वंदना की गई। नन्हें नर्तकों ने भगवान गणेश को भावपूर्ण भावों के साथ लय का सम्मिश्रण करते हुए एक सुंदर भावंजलि अर्पित की।
8 से 40 वर्ष की आयु के छात्रों द्वारा धमार ताल में समूह प्रदर्शन किया गया। इस गतिशील प्रदर्शन में जटिल लयबद्ध चक्र और समन्वित फुटवर्क शामिल थे, जिसने कथक की पारंपरिक गहराई पर जोर दिया।
साजिद वाजिद द्वारा सूफी कथक रचना में 12-20 वर्ष की आयु के कलाकार शामिल थे। इस प्रदर्शन ने आध्यात्मिक सूफी कविता को कथक की जटिल स्पिन और अभिव्यक्तियों के साथ बेहद खूबसूरती से मिलाया।
युवा प्रतिभाओं (5-8 वर्ष) द्वारा तीन ताल तिगुन लय और मध्य लय कथक में सटीक फुटवर्क और लयबद्ध विविधताओं का प्रदर्शन किया गया, जिसने युवा नर्तकों के अनुशासन और जुनून को उजागर किया।
कथक नृत्य प्रतिभाओं को प्रदर्शित करने के लिए मिश्रित समूहों द्वारा शिव स्तुति और सूफी गीतों पर शास्त्रीय प्रदर्शन किया गया।
अकादमी की निदेशक मुक्ता मोनीश मेहता का मानना है कि प्रतिभा हर किसी के भीतर रहती है और सही मार्गदर्शन के तहत पनपती है। वह इस बात पर जोर देती हैं कि संगीत और नृत्य कालातीत गतिविधियां हैं, जो उम्र की परवाह किए बिना जीवन को समृद्ध बनाती हैं।
इस कार्यक्रम में 300 से अधिक माता-पिता, कला के प्रति उत्साही और आर्टेमिस हॉस्पिटल्स के विशेष अतिथि थे, जिन्होंने अकादमी के छात्रों की लगन और कलात्मकता को देखो। समारोह का समापन उत्कृष्ट कलाकारों के सम्मान के साथ हुआ, जिसमें उनकी कड़ी मेहनत और जुनून को मान्यता दी गई।
एक दोपहर का भावपूर्ण संगीत और मंत्रमुग्ध कर देने वाले नृत्य का दर्शकों ने जमकर लुफ्त उठाया। संस्था ने पंडित भीमसेन जोशी जी की स्थायी विरासत को श्रद्धांजलि दी।
स समारोह मनाया।