ऐतिहासिक बड़खल झील की कहानी
Bilkul Sateek News
फरीदाबाद (अजय वर्मा), 19 दिसंबर। वर्ष 2023 में पर्यटकों को आकर्षित करने और शहर को एक नई पहचान देने के उद्देश्य से विकसित की गई बड़खल झील आज अपने अस्तित्व और गुणवत्ता को लेकर गंभीर सवालों के घेरे में है। करोड़ों रुपये की लागत से बनाई गई यह झील महज दो साल के भीतर ही बदहाली की तस्वीर पेश करने लगी है। झील में भरा काला और दुर्गंधयुक्त पानी, चारों ओर फैली जलकुंभी, टूटते-धंसते घाट और अव्यवस्था ने प्रशासनिक दावों की पोल खोल दी है। 1980 के दशक में यह झील गुलजार हुआ करती थी और इंदिरा गांधी, संजय गांधी तक यहां प्राकृतिक का आनंद लेने आया करते थे, लेकिन धीरे-धीरे अरावली में अवैध खनन के चलते इस झील का पानी सूख गया और यह झील वीरान हो गई। बाद में 2023 में करोड़ों की लागत से इस झील को फिर से पानी से भरने का प्रयास हुआ और करोड़ों की लागत से यहां इसे खूबसूरत बनाने के लिए प्रयास किए गए और जब पिछले साल इस झील में भारी बारिशों के चलते पानी भरा तो इसकी सुंदरता लौट आई, लेकिन इसमें पैदा हुई जलकुंभी ने इस पर ग्रहण लगा दिया। जिसको लेकर प्रशासन ने मशीन के द्वारा जलकुंभी निकलने का काम भी किया, लेकिन अब फिर से जलकुंभी ने इस झील को घेर लिया है और इसका स्वरूप बिगाड़ने का काम किया।
पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए बड़खल झील पर नमो घाट का निर्माण किया गया था। उद्देश्य था कि यहां लोग सैर-सपाटे के लिए आएं, समय बिताएं और प्रकृति के करीब महसूस करें। लेकिन वर्तमान हालात इसके ठीक उलट हैं। उन्नत और आकर्षक बनाए गए घाट पर लगे पत्थर मात्र दो वर्षों में ही धंसने लगे हैं। कई स्थानों पर पत्थर टूट चुके हैं, जिससे न सिर्फ सौंदर्य बिगड़ा है बल्कि पर्यटकों की सुरक्षा पर भी खतरा मंडरा रहा है। झील का सबसे चिंताजनक पहलू इसका पानी है। झील का पानी काले रंग का हो चुका है, जिससे तेज दुर्गंध उठ रही है। पानी की सतह पर जलकुंभी पूरी तरह फैल चुकी है, जिसने झील को लगभग ढक लिया है। यह स्थिति न केवल पर्यावरणीय दृष्टि से खतरनाक है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि झील के रखरखाव और सफाई की व्यवस्था पूरी तरह से फेल हो चुकी है।
इस विषय में समाजसेवी विष्णु गोयल ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि बड़खल झील का निर्माण पर्यटकों के लिए किया गया था, लेकिन आज यहां की हालत ऐसी है कि कोई व्यक्ति इस पानी को पीने की तो बात ही छोड़िए, नहाने की कल्पना भी नहीं कर सकता। उन्होंने कहा कि पानी इतना गंदा और जहरीला प्रतीत होता है कि यदि कोई इसमें गलती से उतर जाए, तो उसके डूबने या किसी अनहोनी का खतरा बना रहेगा। विष्णु गोयल ने आगे बताया कि झील से जलकुंभी हटाने के लिए जो विशेष मशीन लगाई गई थी, वह लंबे समय से खराब पड़ी है। मशीन के खराब होने के कारण जलकुंभी लगातार बढ़ती जा रही है, जिससे पानी का बहाव रुक गया है और झील दलदल में तब्दील होती जा रही है।
मौके पर मौजूद पर्यटकों राशिद और भास्कर पांडे का कहना है कि पर्यटक बड़खल झील को एक सुंदर पर्यटन स्थल समझकर यहां आते हैं, लेकिन यहां पहुंचने के बाद उन्हें निराशा ही हाथ लगती है। गंदगी, बदबू और अव्यवस्था के कारण उनका समय बर्बाद होता है। कई पर्यटक बिना रुके ही वापस लौट जाते हैं। स्थानीय लोगों का भी मानना है कि यदि समय रहते हालात नहीं सुधारे गए, तो यह झील एक खतरनाक स्थल बन सकती है। स्थानीय नागरिकों और समाजसेवियों ने प्रशासन से मांग की है कि बडखल झील की तत्काल सफाई कराई जाए, जलकुंभी हटाने की मशीन को दुरुस्त किया जाए और घाट की मरम्मत कराई जाए।
सबसे बड़ा सवाल यह है कि जिस परियोजना को भविष्य की पहचान बताया गया था, उसकी निगरानी और रखरखाव की जिम्मेदारी किसकी है। दो साल में ही पत्थरों का टूटना, घाट का धंसना और पानी का इस कदर प्रदूषित हो जाना, निर्माण की गुणवत्ता और योजना पर भी सवाल खड़े करता है। यदि प्रशासन ने जल्द ठोस कदम नहीं उठाए, तो यह झील पर्यटन स्थल के बजाय प्रशासनिक लापरवाही की पहचान बनकर रह जाएगी।



