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गुरुग्राम, 10 जुलाई। गुरुग्राम स्थित डीपीजी डिग्री कॉलेज में 9 और 10 जुलाई को “सतत भविष्य के लिए मानव समाज और पर्यावरण के योगदान की खोज” विषय पर AICTE द्वारा प्रायोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। कार्यशाला का आयोजन कॉलेज की रिसर्च कमेटी द्वारा किया गया, जिसे ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों रूपों में आयोजित किया गया।
कार्यशाला की शुरुआत दीप प्रज्ज्वलन के साथ हुई। कॉलेज के चेयरमैन राजेंद्र गहलोत ने शुभारंभ अवसर पर कहा कि “आज जब पर्यावरणीय संकट पूरी दुनिया के सामने एक बड़ी चुनौती है, तो
ऐसे आयोजन युवाओं को जागरूक करने और समाधान की दिशा में सोचने की प्रेरणा देते हैं। डीपीजी कॉलेज का यह प्रयास एक सकारात्मक कदम है।”
कॉलेज के वाइस चेयरमैन दीपक गहलोत ने कहा कि “सतत विकास केवल सरकारी नीतियों का विषय नहीं, बल्कि हर नागरिक की जिम्मेदारी है। हमें अपने रोजमर्रा के जीवन में भी पर्यावरण अनुकूल विकल्प अपनाने होंगे।”
कार्यशाला की संयोजक डॉ. अमिता सिंह ने मुख्य अतिथि डॉ. अवनी खटकर (वैज्ञानिक, सीएसआईआर-राष्ट्रीय भौतिक प्रयोगशाला) और विशिष्ट वक्ता डॉ. अनुपम कुलरवाल (सह-प्राध्यापक, महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय) का स्वागत किया।
कॉलेज के प्राचार्य डॉ. एस.एस. बोकन ने कहा कि इस तरह की कार्यशालाएं छात्रों को वैश्विक मुद्दों पर सोचने और समाधान खोजने के लिए प्रेरित करती हैं।
प्रथम दिवस के प्रमुख वक्ता और चर्चाएं:
डॉ. अनुपम कुलरवाल (सह-प्राध्यापक, महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय) ने कार्यशाला के पहले तकनीकी सत्र की शुरुआत करते हुए सतत विकास की मूल अवधारणा को सरल भाषा में समझाया। उन्होंने बताया कि छोटे-छोटे बदलाव जैसे कपड़े के थैलों का उपयोग कर हम बड़ी भूमिका निभा सकते हैं। उनके वक्तव्य ने छात्रों में व्यवहारिक स्तर पर सोच विकसित करने का कार्य किया।
डॉ. अवनी खटकर (वैज्ञानिक, सीएसआईआर-राष्ट्रीय भौतिक प्रयोगशाला) ने अपने वैज्ञानिक दृष्टिकोण से सतत विकास की व्याख्या करते हुए जल संरक्षण, ग्रीन सब्सिडी और प्राकृतिक संसाधनों के टिकाऊ उपयोग की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि पर्यावरणीय समस्याओं को वैज्ञानिक समाधान से जोड़ा जाना चाहिए, ताकि आने वाली पीढ़ियों को संरक्षित भविष्य मिल सके।
डॉ. पवनेश कुमार (प्रोफेसर, स्कूल ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज, इग्नू, नई दिल्ली) ने बहुत ही सरल और सारगर्भित ढंग से समझाया कि सतत विकास का मूल उद्देश्य है वर्तमान जरूरतों को पूरा करते हुए भविष्य की पीढ़ियों के लिए संसाधनों का संरक्षण। उन्होंने शिक्षा और नीति-निर्माण में संतुलन की आवश्यकता पर बल दिया।
डॉ. भूपेंद्र चौधरी (एसोसिएट प्रोफेसर, जेएनयू) ने अपने वक्तव्य में सतत विकास के सामाजिक और वैचारिक पहलुओं पर गहराई से विचार रखे। उन्होंने युवाओं को “परिवर्तन के वाहक” बताते हुए कहा कि समाज में स्थायी परिवर्तन लाने के लिए उनकी भूमिका बेहद अहम है।
द्वितीय दिवस के प्रमुख वक्ता और गतिविधियाँ:
प्रोफेसर एस.एन. मिश्रा (पूर्व डीन, एम.डी.यू.) ने समाज के विभिन्न वर्गों की भागीदारी को रेखांकित करते हुए कहा कि जब तक स्थानीय समुदाय स्वयं को इस प्रक्रिया का हिस्सा नहीं मानेगा, सतत विकास एक लक्ष्य मात्र बना रहेगा। उन्होंने व्यावहारिक उदाहरणों के माध्यम से यह समझाया कि किस प्रकार सामूहिक जिम्मेदारी विकास को दिशा दे सकती है।
डॉ. वासुंधरा (डीन, डीपीजी लॉ कॉलेज) ने “क्लाइमेट जस्टिस” की अवधारणा पर गंभीरता से प्रकाश डाला और बताया कि पर्यावरणीय असंतुलन का असर समाज के हाशिए पर खड़े वर्गों पर सबसे अधिक होता है। उन्होंने न्याय आधारित दृष्टिकोण को नीति निर्माण में शामिल करने की आवश्यकता पर बल दिया।
राहुल तिवारी (NGO – ECOEX) ने पर्यावरण से जुड़े वर्तमान संकटों पर आधारित ठोस और व्यवहारिक समाधान प्रस्तुत किए। उन्होंने रीसाइक्लिंग, अपशिष्ट प्रबंधन और ग्रीन इनोवेशन जैसे उपायों को साझा करते हुए बताया कि सामूहिक प्रयासों से हम इन चुनौतियों का समाधान खोज सकते हैं।
इस दिन कॉलेज परिसर में पौधारोपण अभियान भी आयोजित किया गया, जिसमें विद्यार्थियों और शिक्षकों ने मिलकर पौधे लगाकर पर्यावरण के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाई।
कार्यशाला के अंतिम सत्र में विद्यार्थियों के लिए “हैंड्स-ऑन ट्रेनिंग” आयोजित की गई, जिसमें उन्हें व्यवहारिक रूप से सतत विकास से जुड़ी तकनीकों और रिपोर्टिंग विधाओं से अवगत कराया गया।
कार्यशाला में कुल 7 वक्ताओं ने अपने विचार प्रस्तुत किए। इस आयोजन में करीब 120 छात्र और शिक्षक शामिल हुए, साथ ही गुरुग्राम के विभिन्न कॉलेजों और विश्वविद्यालयों से भी प्राध्यापकों ने सहभागिता की।
कॉलेज के रजिस्ट्रार अशोक गोगिया ने संस्थान के अध्यक्ष से आग्रह किया कि भविष्य में भी इस प्रकार के आयोजन होते रहें।
कार्यक्रम का संचालन रिसर्च कमेटी की संयोजक डॉ. अमिता सिंह और सह-संयोजिका डॉ.आकांक्षा कुलश्रेष्ठ ने किया। इस दो दिवसीय कार्यशाला की सफलता में रिसर्च कमेटी के सभी सदस्यों का महत्वपूर्ण योगदान रहा। डॉ. आशा रानी, डॉ. दीक्षा सचदेवा, डॉ. शमा परवीन और डॉ. रविंदर ने पूरी प्रतिबद्धता और समर्पण के साथ कार्य करते हुए कार्यशाला को विचार, योजना और क्रियान्वयन के हर स्तर पर सफल बनाने में अहम भूमिका निभाई।
समापन समारोह में कॉलेज के सचिव नरेंद्र गहलोत, डीन अकादमिक डॉ. धरमबीर सिंह, डीन स्टूडेंट वेलफेयर डॉ. माधवी और सभी विभागाध्यक्ष डॉ. रीना, डॉ. प्रिया शुक्ला, डॉ. प्रियंका, डॉ. शालिनी, डॉ. नलिनी, डॉ. रेखा, स्वाति, मीनू शर्मा एवं पूजा गोयल उपस्थित रहे।