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चंडीगढ़, 12 दिसंबर। पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने अरावली पर्वतमाला पर सख्त टिप्पणी करते हुए कहा है कि इसकी वैज्ञानिक और पर्यावरणीय सीमा-रेखा को लेकर किसी भी प्रकार की अस्पष्टता स्वीकार नहीं की जाएगी। HC ने इस मामले में हरियाणा के प्रधान मुख्य वन संरक्षक (PCCF) से एक शपथपत्र मांगा है। मामले की अगली सुनवाई अगले साल 9 जनवरी को होगी।
पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट की खंडपीठ ने 9 दिसंबर को याचिका CWP-PIL-150-2020 (हरिंदर धींगरा बनाम राज्य हरियाणा एवं अन्य) की सुनवाई के दौरान हरियाणा सरकार को स्पष्ट दिशानिर्देश जारी किए। याचिका अरावली क्षेत्र की वैज्ञानिक व कानूनी सीमा को लेकर दायर की गई है।
याचिका पर मुख्य न्यायाधीश शील नागू व न्यायमूर्ति संजीव बेरी की खंडपीठ ने राज्य सरकार को आदेश दिया कि:
राज्य के प्रधान मुख्य वन संरक्षक (PCCF) हरियाणा द्वारा एक शपथपत्र दायर किया जाए। जिसमें अरावली पर्वतमाला का सटीक एवं विधिसम्मत क्षेत्र परिभाषित किया जाए और यह परिभाषा…
• पूर्व में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णयों तथा
• 29.11.2025 को पारित आदेश (I.A. No.105701/2024, CEC Report No.03/2024, W.P. (C) No.202/1995 – T.N. Godavarman Thirumulpad v. Union of India)
के अनुरूप हो।
अदालत ने स्पष्ट किया कि अरावली की वैज्ञानिक व पर्यावरणीय सीमा-रेखा को लेकर किसी भी प्रकार की अस्पष्टता स्वीकार नहीं की जाएगी। मामले की अगली सुनवाई के लिए अदालत ने 9 जनवरी निर्धारित की है।
याचिकाकर्ता हरिंदर धींगरा ने कहा “हाई कोर्ट का यह आदेश हरियाणा में अरावली संरक्षण की दिशा में ऐतिहासिक कदम है। अब राज्य को बाध्यकारी रूप से अरावली की सही सीमा अदालत के समक्ष रखनी होगी। जिससे अवैध निर्माण, अवैध बिक्री और पर्यावरण विनाश पर रोक लग सके।”
इस मामले में अदालत के सामने याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता करणवीर सिंह खेहर ने उनका पक्ष रखा।
राज्य की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता नीरज गुप्ता और अन्य प्रतिवादियों की ओर से सीनियर एडवोकेट अंकुर मित्तल और विजय कुमार जिंदल भी मौजूद थे।



