
12 साल की उम्र में दादी से सीखी थी कला
स्टेट अवॉर्ड से किया गया था सम्मानित
पति चलाता था रिक्शा, उन्हें भी सिखाई यह कला
5000 छात्रों को दे चुकी हैं इस पारंपरिक हस्तशिल्प की ट्रेनिंग
फरीदाबाद (अजय वर्मा), 13 फरवरी। सूरजकुंड मेले में बिहार की नाजदा खातून का स्टॉल सबके आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। स्टॉल पर रखे घास और खजूर के पत्तों से बने हस्तनिर्मित पर्स, गुड़िया, चूड़ियां, राधा-कृष्ण की मूर्तियां बरबस ही दर्शकों को अपनी तरफ खींच रहे हैं। खातून ने 12 साल की उम्र में ही यह कला अपनी दादी से सीखी थी। छोटी उम्र में ही रिक्शा चालक से शादी और गरीबी का दंश झेलती खातून ने एक बार तो अपनी बनाई मूर्ति ही तोड़ दी। इसके बाद फिर से उसने हिम्मत की और जुट गई अपने सपनों को पूरा करने में। जिसका फल उसे स्टेट अॅवार्ड के रूप में मिला। अॅवार्ड मिलने के बाद खातून ने पति का रिक्शा छुड़वा उसको भी इस कला का जानकार बना दिया। खातून अब तक 5 हजार छात्रों को हस्तशिल्प का प्रशिक्षण दे चुकी हैं।
मधुबनी जिले की नाजदा खातून बताती हैं कि उन्होंने यह कला 12 साल की उम्र में अपनी दादी से सीखी थी। साथ ही उन्होंने सिलाई का काम भी सीखा था, लेकिन उसकी रुचि हस्तशिल्प में बनी रही। शुरुआती दिनों में उनके बनाए सामान की ज्यादा बिक्री नहीं होती थी, जिससे आर्थिक तंगी बनी रही। परिवार की मजबूरियों के चलते उसकी शादी कम उम्र में ही कर दी गई, लेकिन उसने अपनी कला को नहीं छोड़ा। उसका पति एक रिक्शा चालक था, जिससे घर की स्थिति और खराब हो गई और एक दिन गुस्से में आकर खुद की बनाई मूर्ति तोड़ दी थी, लेकिन फिर सोचा कि इस कला को नहीं छोड़ना चाहिए।
नाजदा खातून ने बताया कि 2011 से उसने अपने हस्तशिल्प का काम पूरी तरह शुरू किया और 2015 में उसकी मेहनत रंग लाई, जब उसे स्टेट अवॉर्ड से सम्मानित किया गया। इसके बाद उसने अपने पति को रिक्शा छोड़कर इस काम में हाथ बंटाने के लिए प्रेरित किया और उन्हें भी यह कला सिखाई। स्टेट अवॉर्ड मिलने के बाद नाजदा खातून को सरकार की ओर से अपनी कला को आगे बढ़ाने का अवसर मिला। खातून ने करीब 5000 विद्यार्थियों को इस पारंपरिक हस्तशिल्प की ट्रेनिंग दी और उन्हें आत्मनिर्भर बनने की राह दिखाई। क्राफ्ट एंड कल्चर डिपार्टमेंट में पंजीकरण कराने के बाद खातून को देशभर के विभिन्न शहरों में अपनी कला प्रदर्शित करने का मौका मिलने लगा। नाजदा खातून पिछले तीन साल से सूरजकुंड हस्तशिल्प मेले में अपनी प्रदर्शनी लगा रही हैं। यहां उनके बनाए हस्तशिल्प की अच्छी बिक्री होती है, जिससे उनका परिवार सुचारू रूप से चल रहा है।