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चंडीगढ़, 10 नवंबर। आरटीआई कार्यकर्ता ओम प्रकाश और हरिंदर ढींगरा ने आज यहां पर प्रेस क्लब में आयोजित एक प्रेस कांफ्रेंस में वोट चोरी पर मय सबूत खुलासा किया है। उन्होंने साथ ही आरोप लगाया कि चुनाव आयोग अब उन्हें आरटीआई के माध्यम से पूरी सूचना नहीं दे रहा है।
उन्होंने बताया कि गुरुग्राम में पिंकी नाम की महिला मतदाता का नाम वोटर लिस्ट में 27 जगह दर्ज है। उन्होंने बताया कि कैसे उनकी डेट ऑफ बर्थ एक ही है। इसके अलावा उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि एक पूर्व मंत्री के रिश्तेदार ने गुरुग्राम में 22 फर्जी वोट बनवाए थे। जिसके लिए उन्होंने माफीनामा भी दिया था और चुनाव आयोग ने उसे माफ कर दिया था। उन्होंने चुनाव आयोग से अनुरोध किया कि जनता के बीच अपनी छवि को बनाए रखने के लिए ऐसे मामलों में वह खुद संज्ञान लेकर जांच करें। इस मामले में उन्होंने कांग्रेस को भी घेरा और राहुल गांधी से अनुरोध किया कि वे तथ्यों पर गहनता से काम करें और सही दिशा में काम करें और सही ढंग से तथ्य जनता के सामने पेश करें तो जनता को सही ढंग से समझ में आएगा। उन्होंने फर्जी वोट बनवाने के आरोपी को कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष बनाने पर घेरा और एक बार राहुल गांधी से मिलने का अनुरोध भी किया ताकि वे उनको हकीकत से रू-ब-रू करवा सकें।
गुरुग्राम की चर्चित “पिंकी” पर नया खुलासा करते हुए ओम प्रकाश और हरिंदर ढींगरा ने दावा किया कि गुरुग्राम विधानसभा क्षेत्र-77 की मतदाता सूची में पिंकी नाम की एक महिला का नाम 27 जगहों दर्ज है। हाल ही में कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में पिंकी की तुलना एक ब्राजीलियन मॉडल से करते हुए टिप्पणी की थी, जिसके बाद यह मामला चर्चा में आ गया था।
दोनों आरटीआई कार्यकर्ताओं ने बताया कि जांच के दौरान उन्होंने इन नामों से जुड़े दस्तावेज एकत्र किए, जिनमें चार नाम विशेष रूप से सामने आए-
पिंकी पत्नी फूल सिंह
पिंकी पत्नी राम मेहर
पिंकी पत्नी शिव कुमार
पिंकी पुत्री संतोष कुमार

चौंकाने वाली बात यह है कि इन चारों नामों के साथ दसवीं कक्षा का एक ही प्रमाणपत्र लगाया गया है, जो जांच में फर्जी पाया गया। इतना ही नहीं, इन सभी फॉर्म-6 पर एक जैसी लिखावट (हैंडराइटिंग) पाई गई है और इन्हें स्वीकृति देने वाले अधिकारी की हस्तलिपि भी समान है।
आरटीआई कार्यकर्ताओं के अनुसार किसी भी फॉर्म-6 को क्षेत्र के बीएलओ (बूथ लेवल ऑफिसर) द्वारा सत्यापित नहीं किया गया है, जिससे चुनावी प्रक्रिया की पारदर्शिता पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। अब सवाल यह है कि आखिर इतनी बड़ी गड़बड़ी के बावजूद प्रशासन की निगाह इस पर क्यों नहीं पड़ी और क्या इन फर्जी प्रविष्टियों के जरिए किसी राजनीतिक लाभ की साज़िश रची गई थी?



