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ज्वालामुखी, 12 जनवरी। ये दृश्य आज सुबह 7 बजकर 39 मिनट का है। कोहरे की चादर में यहां से लगभग 1.5 किमी दूर स्थित पांडवकालीन महाकालेश्वर मंदिर कोहरे की चादर के पीछे छुप गया है। मां ज्वालामुखी मंदिर-चंबापतन मार्ग पर जहां से दृश्य लिया गया है, वहां से आम दिनों में यह मंदिर साफ-साफ नजर आता है। यह मंदिर पवित्र व्यास नदी के किनारे पर बना हुआ है।
मान्यता में यह पवित्र स्थल हरिद्वार से भी एक सूद उपर माना जाता है। यहां अज्ञातवास के दौरान पांडव रूके थे। अर्जुन ने मां कुंती की पूजा के लिए यहां तीर मार कर पांच नदियों का पवित्र जल निकाला था। इसलिए इस जगह को पंचतीर्थी भी कहा जाता है। यह पवित्र जल आज भी यहां से निरंतर निकलता है। आसपास के क्षेत्रों में गर्मियों में भले ही पानी की कमी हो जाए, परंतु पंचतीर्थी के आसपास कभी जल की कमी महसूस नहीं होती। आज भले ही सब जगह सरकार ने पानी पहुंचा दिया और फिर भी पहले के समय में पानी की कमी होने पर ग्रामीण पंचतीर्थी के आसपास से पानी लेकर जाया करते थे।

महाकालेश्वर मंदिर और पंचतीर्थी के बीच में से एक खड्ड व्यास नदी में मिलती है। श्रद्धालु पंचतीर्थी में पवित्र स्नान करने के बाद शिवलिंग पर इस पवित्र जल को अर्पित करते हैं। पूरे विश्व में यह एकमात्र शिवलिंग है जो उल्टा शिवलिंग यानि जमीन के अंदर है। आसपास ही नहीं दूरदराज के क्षेत्रों से लोग अपने परिजनों का अंतिम संस्कार करने के लिए यहां के घाट पर आते हैं। यहां तक कि यदि किसी का अंतिम संस्कार कहीं और किया जाता है तो उसकी अस्थियों का प्रवाह भी यहां व्यास नदी की पवित्र धारा में किया है। पंचतीर्थी मां ज्वालामुखी मंदिर से मात्र 11.5 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। यहां पंजाब के श्रद्धालु भी अत्यधिक संख्या में आते हैं। हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में स्थित इस पवित्र स्थल पर लोहड़ी और मकर संक्राति हजारों श्रद्धालु पुण्य की डुबकी लगाने आएंगे। यहां पर बैसाखी पर व्यास नदी के दोनों तरफ दो दिवसीय मेला लगता है। जिसमें शामिल होने के लिए दूरदराज के क्षेत्रों से हजारों लोग यहां पहुंचते हैं।