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नई दिल्ली (अजय वर्मा), 13 अगस्त। बधिर वर्ग के अंतरराष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय स्तर पर स्वर्ण एवं रजत पदक जीत चुके खिलाड़ियों ने “अंतरराष्ट्रीय खेल आयोजनों में पदक विजेताओं को नकद पुरस्कार देने की योजना” 1 फरवरी 2025 को चुनौती देते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि संशोधित नीति में बधिर खिलाड़ियों के साथ भेदभाव किया गया है, क्योंकि उन्हें समान उपलब्धियों के बावजूद पैरा खिलाड़ियों की तुलना में काफी कम नकद पुरस्कार दिया जाता है।
यह मामला “वीरेंद्र सिंह एवं अन्य बनाम भारत संघ” (डब्ल्यूपी (सी) संख्या 12082/2025) शीर्षक से आज न्यायालय के समक्ष सूचीबद्ध हुआ। याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता अजय वर्मा ने दलील दी कि विवादित नीतिः
- विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम 2016 का उल्लंघन करती है, जो समानता और भेदभाव-निषेध की गारंटी देता है;
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 में निहित समानता और गरिमा के सिद्धांतों के विपरीत है;
- सर्वाेच्च न्यायालय के स्थापित निर्णयों के विरुद्ध है, जिनमें समान कार्य में संलग्न विकलांग व्यक्तियों के साथ समान व्यवहार का समर्थन किया गया है।
- दलीलों में कहा गया कि बधिर खिलाड़ी, पैरा-खेल प्रतियोगिताओं के समान स्तर और कठिनाई वाले अंतरराष्ट्रीय आयोजनों में लगातार देश का नाम रोशन करते आए हैं, लेकिन वर्तमान नीति उन्हें समान मौद्रिक मान्यता से वंचित करती है, जिससे उनकी गरिमा और योगदान को ठेस पहुंचती है।
न्यायालय ने सुनवाई के उपरांत भारत सरकार को नोटिस जारी किया और जवाब मांगा।
विक्रम वशिष्ठ ने बताया कि इस मामले में याचिकाकर्ताओं ने निम्न निर्देश देने का आग्रह किया हैः
- एक फरवरी 2025 की अधिसूचना में निहित भेदभावपूर्ण प्रावधानों को निरस्त किया जाए;
- बधिर खिलाड़ियों और पैरा खिलाड़ियों के बीच समान उपलब्धियों पर नकद पुरस्कार में समानता प्रदान की जाए;
- पात्र बधिर खिलाड़ियों को टारगेट ओलंपिक पोडियम स्कीम (टीओपीएस) के लाभ दिए जाएं, ताकि उन्हें निष्पक्ष प्रशिक्षण और तैयारी का सहयोग मिल सके;
- बधिर खिलाड़ियों को भारत के खेल ढांचे में समान दर्जा प्रदान किया जाए तथा सभी सरकारी प्रोत्साहन एवं सहायता योजनाओं में शामिल किया जाए।
- मामले की अगली सुनवाई 29 अक्टूबर को होगी।