
पलवल : कृषि एवं किसान कल्याण विभाग की ओर से प्राकृतिक खेती योजना के तहत जिला स्तरीय किसान कार्यशाला का आयोजन किया गया। इस कार्यशाला में आसपास के गांवों से आए करीब 300 किसानों ने भाग लिया। कार्यशाला में डॉ. वीरेंद्र देव आर्य ने किसानों को प्राकृतिक खेती के महत्व और उसके लाभों के बारे में जागरूक किया। उन्होंने बताया कि प्राकृतिक खेती बिना रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के की जाती है, जिसमें पशुधन और स्थानीय संसाधनों का उपयोग होता है। इस खेती पद्धति से मिट्टी के स्वास्थ्य को बनाए रखने और उपज की गुणवत्ता में सुधार करने में मदद मिलती है।
डॉ. आर्य ने किसानों को प्राकृतिक खेती के दौरान बरती जाने वाली सावधानियों के बारे में भी विस्तृत जानकारी दी। उन्होंने बताया कि जीवामृत, घन जीवामृत, बीजामृत, नीमास्त्र, ब्रह्मास्त्र, अग्निअस्त्र, सोठास्त्र, दशा पड़नी, नीम पेस्ट और गोमूत्र जैसे प्राकृतिक उत्पादों का उपयोग खेती में किया जाता है, जिससे फसल को बेहतर पोषण मिलता है और मिट्टी की उर्वरता बनी रहती है।
उन्होंने किसानों से रासायनिक खेती छोड़कर प्राकृतिक खेती अपनाने की अपील की। उन्होंने कहा कि प्राकृतिक खेती से उत्पादित अन्न स्वास्थ्य के लिए बेहतर होता है और इससे बीमारियों से बचाव किया जा सकता है। प्राकृतिक खेती न केवल मिट्टी के प्राकृतिक स्वरूप को बनाए रखती है बल्कि जीव-जंतुओं और पर्यावरण के लिए भी अनुकूल होती है।
कार्यशाला में मौजूद किसानों ने प्राकृतिक खेती को भारतीय परंपरा का हिस्सा बताया और कहा कि यह खेती पर्यावरण के अनुकूल और आर्थिक रूप से भी लाभदायक है। किसानों का मानना है कि प्राकृतिक खेती से उत्पादन लागत कम होती है और सुरक्षित व स्वस्थ भोजन मिलता है। इसका उद्देश्य किसानों को प्राकृतिक खेती की तकनीकों से अवगत कराना और उन्हें रासायनिक खेती से हटकर जैविक और प्राकृतिक खेती की ओर प्रेरित करना था।
कार्यक्रम में कृषि उपनिदेशक डॉ. वीरेंद्र देव आर्य, उपमंडल कृषि अधिकारी डॉ. अजीत सिंह, डॉ. रेखा (पशु विज्ञान केंद्र, पलवल), कृषि अभियंता विजय यादव, एडीओ नैन्सी एवं रूबी, मनोहर लाल (अटल भूजल योजना), रोहताश सिंह (इफको), सुमित कुमार (कुसुम योजना), ब्लॉक तकनीकी प्रबंधक सुंदर सिंह और अतुल कुमार शर्मा सहित कई विशेषज्ञ उपस्थित रहे।